आर्यम गुरु पूर्णिमा 2025 महोत्सव संपन्न, सहस्त्र कमल पुष्पों से हुआ दिव्य वैदिक पुष्पार्चन मंत्रोच्चार।

मसूरी:- आर्यम इंटर नेशनल फाउडेशन के तत्वाधान में गुरू पूर्णिमा पर नोएडा स्थित शाखा में आर्यम गुरु पूर्णिमा महोत्सव 2025 संपन्न हुआ। इस अवसर पर देश विदेश से 325 श्रद्धालु इस समारोह में सम्मिलित हुए।  कार्यक्रम गुरुदेव आर्यम के सानिध्य में हुआ। गुरु पूर्णिमा की शुभ वेला पर पधारे भक्तों में 44 को नव दीक्षा, 64 को मंत्र दीक्षा एवं 180 को शक्तिपात दीक्षा परमपूज्य जगद्गुरु प्रोफ़ेसर पुष्पेंद्र कुमार आर्यम जी महाराज द्वारा प्रदान की गयी।
इस मौके पर पुष्पेद्र कुमार आर्यम महाराज ने कहा कि भगवान विष्णु त्रिमूर्ति में पालनकर्ता के रूप में स्थापित हैं। वहीं हैं जिनके कारण यह धरा सुरक्षित, जीवन संतुलित एवं धर्म जीवित रहता है।

गुरु भी शिष्यों के जीवन में यही कार्य करते हैं। मानव जाति को धर्म से जोड़े रखना, दोषयुक्त प्रवृत्तियों से दूर रखना एवं उन्हें भौतिक और अधिभौतिक जगत में बलिष्ठ बनाना। गुरु पूर्णिमा भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण पर्व है जो प्राचीन काल से चली आई गुरु-शिष्य परंपरा को उत्सवधर्मिता के साथ स्थापित करता है। इस मौके पर आर्यम महोत्सव के पहले सत्र में एक हज़ार कमल के पुष्पों एवं अन्य पुष्पों से विष्णु सहस्त्रनाम से पुष्पार्चन किया गया। गुरुदेव आर्यम का कथन है कि गुरु वो है जो गुर यानी गुण देता हो। अध्यापक, आचार्यों और शिक्षकों के इतर गुरु वो होते हैं जो किसी एक विषय पर नहीं बल्कि समग्रता के साथ सभी ज्ञात और अज्ञात विषयों की सैद्धांतिक और व्यावहारिक शिक्षा प्रदान करते हैं। आज ही के दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था जिन्होंने वेदों का संकलन और महाभारत की रचना की थी। श्री आर्यम गुरुदेव ने सभी शिष्यों को बतलाया कि गुरु अपने शिक्षा में पक्षपात नहीं करता है। इसके बावजूद कोई अर्जुन होता है तो कोई दुर्योधन। हमारी अभिरुचियाँ और अभिवृत्तियाँ ही हैं जो ये तय करती हैं कि हम किन गुणों का संचय और किन दोषों को तिरोहित करते हैं। जहाँ शिक्षा आपको सीमित रखती है वहीं दीक्षा आपको आसमान छूने के काबिल बनाती है। इसी के चलते उन्होंनें जीवन में शिक्षा के साथ दीक्षा के महत्त्व पर प्रकाश डाला। आर्यम महोत्सव के दूसरे सत्र दीक्षा उत्सव में देश-विदेश से पधारे शिष्यों में 44 को नव दीक्षा, 64 को मंत्र दीक्षा एवं 180 को शक्तिपात दीक्षित होना का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आर्यम गुरुदेव अकेले ऐसे गुरु हैं जिन्होंने हिंदू वैदिक मूल्यों को परिवर्तित एवं संशोधित कर दीक्षा के लिए मयूरपंखी नीले रंग का चयन किया है। इस तथ्य को स्पष्ट करते हुए गुरुदेव ने कहा कि उनसे पूर्ववर्ती गुरुओं जिनमें अंगिरा ऋषि, गुरु गोरखनाथ, एवं दशमेश गुरु गोबिंद सिंह द्वारा यही रंग चयन किया गया था। यह मनुष्य जीवन में सप्त चक्रों में से एक सर्वाधिक सहस्त्र का प्रतिनिधित्व करता है। जिसके जागृत होने से मनुष्य जीवन में आध्यात्म एवं धार्मिक मूल्यों का श्रेष्ठ गुणों के साथ नए आयाम स्थापित होते हैं। ट्रस्ट की अधिशासी प्रवक्ता माँ यामिनी श्री ने बताया की आर्यम जी महाराज के विश्व भर में सर्वाधिक दीक्षित शिष्य हैं। जहाँ लोग औसत और साधारण को चुनते हैं वहीं आर्यम जी महाराज श्रेष्ठ को चुनने की शिक्षा देते हैं। वैदिक अग्निहोत्र, पुष्पार्चन, एवं विधिवत पाठों का प्रचार आर्यम गुरुदेव के प्रकल्प से ही संभव हो सका है। गुरुदेव द्वारा रचित ‘सत्य सनातन अमर रहे’ नारे की गूँज विदेश तक जाती है जब उनके शिष्य अपनी जीवन शैली में अग्निहोत्र और वैदिक प्रार्थनाओं को शामिल करते हैं। ज्ञातव्य हो कि आज गुरुदेव आर्यम की शिक्षाओं से एवं समाज उद्धारक प्रकल्पों की सहायता से लाखों लोगों का जीवन रूपांतरित हो रहा है। समारोह के आयोजन में राकेश रघुवंशी,संध्या, सुनील आर्य, प्रीतेश आर्यम, हर्षिता आर्यम, श्वेता जायसवाल, शालिनी अरोड़ा, गौरव स्वामी, चंद्रपाल शर्मा, रोहित वेदवान, प्रदीप यादव आदि का सहयोग रहा।