मसूरी:- मछलियों को पकड़ने वाले उत्तराखंड की लोक संस्कृति का अनोखा पर्व मौण मेला यमुना की सहायक नदी अगलाड़ में पारपंरिक रीति रिवाज व वाद्ययंत्रों की धुन पर शुरू हुआ। इस मेले में बड़ी संख्या में हजारों लोगों की मौजूदगी में मछलियां को पकड़ा गया।
मसूरी के निकटवर्ती जौनपुर विकासखंड स्थित यमुना नदी की सहायक नदी अगलाड़ में मौण मेला पूरे उत्साह के साथ मनाया गया। इस बार सिलगांव की बारी थी जहां के लोगों ने पारंपरिक वाद्ययंत्रों की धुन पर नाचते गाते हुए अगलाड़ नदी के मौण कोट पहुंचे जहां पर गांव से लाया गया टिमरू का पाउडर पूजा अर्चना के बाद नदी में डाला गया। मौण नदी में डालते ही हजारों की संख्या में ग्रामीण नदी मे मछलियों को पकडने के लिए कूद गये। इस बार बरसात अधिक होने के कारण नदी में पानी अधिक था उसके बावजूद ग्रामीणों ने नदी में जाकर पारपंरिक उपकरणों, मछौनी, कंडियाला, फटियाड़ा, जाल, खाडी, आदि में माध्यम से मछलियों को पकड़ा। राज मौण के नाम से जाने जाना वाला यह मौण मेला हरवर्ष अगलाड नदी में लगता है,जिसमें जो लोग मछलियां भी नहीं खाते वह भी मछलियों को पकड़ते हैं। मौण मेले में बड़ी संख्या में जौनपुर विकासखंड के ग्रामीणों के साथ ही जौनसार व रवांई क्षेत्र के लोगों के साथ ही मसूरी से भी बड़ी संख्या में लोग जाते है और अब तो इस मेले को देखने के लिए पर्यटकों के साथ ही इस मेले का अध्ययन करने के लिए वैज्ञानिक भी जाते हैं। एक ओर जहां लोग मछलियों को पकड़ने के लिए नदी में जाते है वहीं दूसरी ओर पारंपरिक वाद्ययंत्रों में बीच लोक नृत्य भी जारी रहता है। इस बार भी बड़ी संख्या में लोगों ने मछलियों को पकड़ा व गांव जाकर मेहमानों को परोसा।
मछलियों को मारने का यह अनोखा पर्व केवल इसी क्षेत्र में मनाया जाता है पहले इसमें टिहरी के महाराजा भी शरीक होते थे जिस कारण इसे राजमौण कहा जाता है विगत कई वर्षों तक मेले में लड़ाई झगडा होने के कारण इस मेले को बंद कर दिया गया था लेकिन उसके बाद इसे फिर से खोल दिया गया है।
मौण में मछलियों को मारने के लिए टिमरू नाम की वनस्पति का पाउडर नदी में डाला जाता है जिससे मछलियां बेहोश हो जाती है व आसानी से पकड़ी जाती हैं। टिमरू का पाउडर उस क्षेत्र के लोग बनाते है जिनकी बारी होती है इस बार सिल गांव की बारी थी तो मौण के लिए टिमरू का पाउडर वहां के लोगों ने बनाया।
मेला वैज्ञानिक दृष्टि से नदी को साफ करने के लिए भी उपयोगी माना जाता है। नदी में वर्ष भर जमी गाद को सैकडों लोगों के नदी में जाने पर साफ हो जाती है जिससे नदी में आक्सीजन की मात्रा बढ जाती है व मछलियों को पनपने में सहयोगी होती है।
मसूरी के निकटवर्ती जौनपुर विकासखंड स्थित यमुना नदी की सहायक नदी अगलाड़ में मौण मेला पूरे उत्साह के साथ मनाया गया। इस बार सिलगांव की बारी थी जहां के लोगों ने पारंपरिक वाद्ययंत्रों की धुन पर नाचते गाते हुए अगलाड़ नदी के मौण कोट पहुंचे जहां पर गांव से लाया गया टिमरू का पाउडर पूजा अर्चना के बाद नदी में डाला गया। मौण नदी में डालते ही हजारों की संख्या में ग्रामीण नदी मे मछलियों को पकडने के लिए कूद गये। इस बार बरसात अधिक होने के कारण नदी में पानी अधिक था उसके बावजूद ग्रामीणों ने नदी में जाकर पारपंरिक उपकरणों, मछौनी, कंडियाला, फटियाड़ा, जाल, खाडी, आदि में माध्यम से मछलियों को पकड़ा। राज मौण के नाम से जाने जाना वाला यह मौण मेला हरवर्ष अगलाड नदी में लगता है,जिसमें जो लोग मछलियां भी नहीं खाते वह भी मछलियों को पकड़ते हैं। मौण मेले में बड़ी संख्या में जौनपुर विकासखंड के ग्रामीणों के साथ ही जौनसार व रवांई क्षेत्र के लोगों के साथ ही मसूरी से भी बड़ी संख्या में लोग जाते है और अब तो इस मेले को देखने के लिए पर्यटकों के साथ ही इस मेले का अध्ययन करने के लिए वैज्ञानिक भी जाते हैं। एक ओर जहां लोग मछलियों को पकड़ने के लिए नदी में जाते है वहीं दूसरी ओर पारंपरिक वाद्ययंत्रों में बीच लोक नृत्य भी जारी रहता है। इस बार भी बड़ी संख्या में लोगों ने मछलियों को पकड़ा व गांव जाकर मेहमानों को परोसा।
मछलियों को मारने का यह अनोखा पर्व केवल इसी क्षेत्र में मनाया जाता है पहले इसमें टिहरी के महाराजा भी शरीक होते थे जिस कारण इसे राजमौण कहा जाता है विगत कई वर्षों तक मेले में लड़ाई झगडा होने के कारण इस मेले को बंद कर दिया गया था लेकिन उसके बाद इसे फिर से खोल दिया गया है।
मौण में मछलियों को मारने के लिए टिमरू नाम की वनस्पति का पाउडर नदी में डाला जाता है जिससे मछलियां बेहोश हो जाती है व आसानी से पकड़ी जाती हैं। टिमरू का पाउडर उस क्षेत्र के लोग बनाते है जिनकी बारी होती है इस बार सिल गांव की बारी थी तो मौण के लिए टिमरू का पाउडर वहां के लोगों ने बनाया।
मेला वैज्ञानिक दृष्टि से नदी को साफ करने के लिए भी उपयोगी माना जाता है। नदी में वर्ष भर जमी गाद को सैकडों लोगों के नदी में जाने पर साफ हो जाती है जिससे नदी में आक्सीजन की मात्रा बढ जाती है व मछलियों को पनपने में सहयोगी होती है।