मसूरी:- पूर्व सांसद प्रदीप टम्टा ने उत्तरकाशी दौरे पर जाते हुए मसूरी में कहा कि धराली की घटना प्राकृतिक घटना नहीं बल्कि मानव जनित है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2010 में केंद्र में कांग्रेस की सरकार में प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता में कमेटी बनी थी जिन्होंने तीन पावर प्रोजेक्ट रिजेक्ट किए थे।
जिसमें जयराम रमेश भी थे उन्होंने मनेरी भाला, पाला मनेरी व भटवाडी थे अगर यह बन गये होते तो और बड़ी आपदा आ सकती थी। उसी आधार पर 2012 में भारत सरकार ने जयराम रमेश व अन्य नेताओं ने पूरे क्षेत्र में तीन हजार वर्ग स्कवायर किमी क्षेत्र गोमुख से उत्तरकाशी तक ईको सेंसेटिव जोन घोषित किया था व तय किया गया था कि राज्य सरकार जोनल मास्टर प्लान बनायेगी कि इसमें क्या क्या गतिविधि हो सकती है, जिसमें गंगा की उदगम नदी, वहां के वायो डायरसिटी को, स्थानीय नागरिकों को सुरक्षित रखने को ध्यान में रखतेे हुए विकास का मॉडल बनाये तब राज्य सरकार ने इसका विरोध किया था। मै खुद एपपी था व सोनियां गांधी से मिला इन तीनों प्रोजेक्टोे को बंद करने का समर्थन किया व कहा कि वह किसी दबाव में न आये। उसके बाद भारत सरकार व कांग्रेस की प्रदेश सरकार ने एक मास्टर प्लान बना कर दिया वहा कौन कौन सी गतिविधियां होगी। जिसे जिलाधिकारी की देखरेख में बनेगा व उसकी मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कमेटी बनेगी लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे इग्नोर कर दिया व ईको सेसेंटिव जोन में गतिविधियां बढी जिसका परिणाम सामने है। उन्होंने कहा कि यह सवाल केवल धराली, उत्तरकाशी का नहीं बल्कि ये पूरे उत्तराखंड के अपर हिमालय क्षेत्र चमोली, जोशीमठ, पिथौरागढ, धारचुला, मुन्सयारी, रूद्र प्रयाग का है,इन स्थानों पर जो विकास के नाम पर छेड़छाड कर रहे है उसका नुकसान स्थानीय लोगों को हो रहा है व बड़े लोग इसका लाभ ले रहे हैं। धराली की यह घटना सबक सिखा रही है कि ईको सेंसेटिव जोन की बुनियादी अवधारणा को लागू करे। सरकार ने अभी तक कितने लोग गायब, मृत है उसका आंकड़ा जारी नहीं किया। इस पर सोचना पडेगा कि आखिर हम उत्तराखंड को इस विकास के मॉडल से कहां ले जाना चाहते हेैं। सोचना पडेगा कि धर्म को क्या व्यापार बना रहे हैं, ईश्वर ने भी चार धाम यात्रा को छह माह के लिए बनाया, लेकिन शीत कालीन यात्रा के नाम पर छेड़छाड कर रहे हैं, यहां के लोगों का जीवन मूल्यवान है व राजनीति से हटकर अपर हिमालय के लिए एक संवेदनशील विजन की जरूरत है। कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखंड सभी बरसात में ऐसी आपदाओं से परेशान हैं। उन्होंने कहा कि धराली में ईको सेसेंटिव जोन बनाया जाय, धर्म के नाम पर बड़े रिजोर्ट बनने बंद किए जाय। यहां के लोगों व हिमालय को जीने का हक है। सरकार की आपदा प्रबंधन पूरी तरह फेल है कि अभीतक पता नहीं कि कितने लोग मरे, कितने गायब है, सडकें तबाह है। स्थानीय लोगों की क्या स्थिति है, पर्यटकों की क्या स्थिति है, बडे लोगों को हेलीकाप्टर से रेस्कयू किया जा रहा है स्थानीय लोगों को वहीं छोडा जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस बार आपदा मानकों का भी मजाक बना दिया गया है पांच हजार दिए जा रहे है जिसे लोगों ने नकार दिया है जबकि वर्ष 2016 में भारत सरकार ने राज्य सरकार के सहयोग से आपदा मानकों को सुधारा था जिसे मोदी सरकार ने वापस ले लिया। सरकार आपदा पीडितों के विस्थापन उनके खाने पीने, स्कूल, बुनियादी सुविधाओं पर कोई ध्यान नहीं दे रही है। इस मौक पर उनके साथ जबर वर्मा मौजूद रहे।
