बहुआयामी भूभौतिकीय वेधशाला का शिलान्यास, वैज्ञानिक शोध को मिलेगी नई दिशा।

मसूरी:-  इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ जियोमैगनीजियम के तत्वाधान में मल्टी पैरामैट्रिक जियोफिजिकल आब्जरवेटरी भू भौतिकीय वेधशाला मसूरी का शिलान्यास सर्वे ऑफ इंडिया लंढौर कैंपस में किया गया। इस संस्थान के बनने से पूरे उत्तराखंड सहित देश में आने वाली प्राकृतिक आपदाओं के बारे में सटीक जानकारी मिल सकेगी, वहीं वैज्ञानिक शोध को नई दिशा मिलेगी।
सर्वे ऑफ इंडिया लंढौर के कैंपस में भू विज्ञान एवं आपदा प्रबंधन से जुड़े वैज्ञानिक अनुसंधान को सुदृढ करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए भारतीय भू चुंबकत्व संस्थान आईआईजी ने बहु आयामी भूभौतिकीय वेधशाला का शिलान्यास निदेशक सीएसआईआर, एनईआईएसटी व रिसर्च काउंसिल के चेयरमैन डा. वीएम तिवाड़ी, निदेशक भारतीय भूचुंबकत्व संस्थान व इंजीनियर निदेशक उत्तराखंड भू स्थानिक निदेशालय नीरज कुमार ने पूजा अर्चना के साथ किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि यह वेधशाला आने वाले समय में प्राकृतिक आपदाओं सहित अन्य क्षेत्र में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान देगी। उन्होने कहा कि इस क्षेत्र में जियो मैग्नेटियम अर्थ की मैग्नेटियम से संबंधित रहती है जो समय के साथ बदलती रहती है जो कई प्रकार के प्रोसेस व इवेंट से जुडी रहती है, उसका आबजरवेशन  करते हैं, जियो मैगनेटिक डेटा का उपयोग कर वातावरण के उपर के भाग के बारे में जानते है व जो मैग्नेटिक स्टाम होते है वह प्रभावित करती है,इस वेधशाला का स्थानीय के साथ वैश्विक महत्व है। इसके निर्माण होने से हिमालय के विभिन्न प्रासेसेज है, एटमास्फेयरिक प्रासेसेज उनकी जानकारी में मदद मिलेगी व ग्लोबल प्रासेसेज में यह डेटा उसको और अधिक वेल्यू आडिशन करेगा। नेचुरल डिजास्टर, व  पैरामैट्रिक जियोफिजिकल आब्जरवेटरी का शिलान्यास निदेशक इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ जियोमैग्नैटिज्म ने किया। इस मौके पर कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो. एपी डिमरी निदेशक आईआईजी मुबंई ने कहा कि यहा पर नई वेधशाला खोल रहे है, यह मध्य हिमालय में खोल रहे है, इसके भू चुंबकत्वीय आयाम बहुत अधिक हैं, जो हमारा अर्थ का मैग्नेटिक फील्ड है उसकी मानेटरिंग व आबरवेशन करेंगे व उसकी सूचना रखेगे व उसमें काफी आयाम बढेगे, यहा पर वातावरण स्वच्छ होने के कारण आइनोस्फिरिक साइसमेलॉजी वल्कनोजी का कान्सेप्ट है उसके लिए आइनोसिफक रडार लगायेगें जो हमें सारी सूचनाए देगा। उन्होने कहा कि हिमालय नया पहाड़ है जिसके नव निर्माण की सूचना के लिए बहुत बडा योगदान देगी व जो वैज्ञानिक व शोधार्थी है उनको नये आंकडो के आधार पर नये निष्कर्ष निकालने में तुलनात्मक अध्ययन में सहयोग करेगी। उन्होंने सर्वे ऑफ इंडिया का विशेष आभार व्यक्त किया जिन्होंने वेधशाला बनाने के लिए स्थान दिया। यहां पर विभिन्न नये व आधुनिक व स्व चलित उपकरण लगायेगे जिससे भू गर्भ व आकाश में होने वाली घटनाओं के बारे में जानकारी मिलेगी व पूर्ण अर्थ सिस्टम साइस का मॉडल बनाने व अन्य आबर्जेविटरियों के साथ गैप को कम करेगी। वहीं हांडले, लददाख, सेट्रल हिमालय मसूरी, ईस्टर्न हिमालय नागालैड, तेजपुर सहित पूरे हिमालय के आबजर्वेशन में योगदान देगी। उन्होने कहा कि आने वाले समय में शोधार्थियोंव वैज्ञानिको सहित, 2047 के नव निर्माण में बडा योगदान देगी। उन्होंने यह भी बताया कि हिमालयी क्षेत्र भूभौतकीय गतिविधियों की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील है, जिसमें यह वेधशाला राष्ट्रीय स्तर पर भूभौतिकीय डेटा नेटवर्क को मजबूती मिलेगी, वेधशाला के माध्यम से वैज्ञानिकों को उच्च गुणवत्ता वाले डेटा उपलब्ध होगें, जो दीर्घकालीन भू भौतिकीय शोध के लिए उपयोगी होगी, इससे भू चुंबकीय परिवर्तनों का सूक्ष्म अध्ययन किया जा सकेगा व पहाड़ी क्षेत्रों में आपदा प्रबंधन की वैज्ञानिक क्षमता बढेगी। कार्यक्रम का संचालन डा. गोपी सीमाला ने किया। इस मौके पर निदेशक जियो स्पेशल निदेशालय के आईईएस नीरज कुमार, जेएनयू के डा. सुरजमल, डा. आरपी सिंह निदेशक आईआईआरएस इसरो, डा. चंदर सिंह तोमर निदेशक आईएमडी, एमओईएस, डा. विनीट गहलौत निदेशक वाडिया इंस्टीटयूट, डीएसटी, देवेंद्र प्रकाश मुख्य अभियंता सीपीडब्ल्यूडी, डान नरेंद्र सिंह एआरआईईएस, डीएसटी, प्रो. देव नियोगी टेक्सास विश्वविद्यालय, आस्टिन, डां. बेन रोबसन एंड शोधकर्ता युनिवर्सिटी ऑफ बेरगन नार्वे, कमांडर आशुतोष शुक्ला रजिस्ट्रार आईआईजी मुंबई, निदेशक आईटीएम सहित देश व विदेश के प्रतिष्ठित संस्थानों के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अधिकारी मौजूद रहे।